This oleograph was publised from Ravi Varma Press Karla Lonvala, & probally made by MV Dhurandhar around 1920-25.
Details of Story is mentioned below in Hindi, as per play.
छैल बटाऊ-मोहना रानी
"छैल बटाऊ-मोहना रानी : नाट्य रूप में अभिमंचित मध्यकालीन प्रेमगाथा"
छैल बटाऊ-मोहना रानी की कथा मुख्यतः दो रूपों में मिलती है।
पहली, छत्तीसगढ़ी रूप में,
दूसरी, पश्चिमोत्तर भारतीय रूप में.
सबसे पहले छत्तीसगढ़ी रूप-
पुराने जमाने में अवधे नगर की राजकुमारी थी-
मोहना.
पूरा नाम मोहना दे गोरी कईना.
उसकी खूबसूरत ऐसी थी कि
जो देखे, सम्मोहित हो जाए.
राजकुमारी अपने राज्य की रानी भी बन चुकी थी।
उस समय दिल्ली में मुगल बादशाह अकबर का शासन था.
दिल्ली के पांच फकीर विचरते हुए अवधे नगर पहुँचे.
मोहना रानी ने उनका स्वागत किया,
भिक्षा में अन्न-धन-वस्त्र दिया.
फिर चलते समय पूछा कि
क्या वे उसकी अमानत बादशाह अकबर को दे देंगे।
फकीरों ने हामी भर दी.
मोहना ने उन्हें अपनी सोने की मूर्ति दी,
आदमकद, अपनी प्रतिच्छवि.
लोकभाषा में वह मूरत दपकी थी.
फकीर मूरत लेकर दिल्ली पहुंचे,
वहाँ जब वे अकबर के दरबार में गये,
तो अकबर ने जब वह मूरत देखी,
तो विस्मित रह गया कि
कोई इतना भी सुंदर हो सकता है।
उसने फकीरों से पूछा कि
क्या मोहना रानी सचमुच इतनी ही सुंदर है.
फकीरों ने कहा कि
यह तो कुछ भी नहीं है।
सोना चाँदी में तो दूसरे रंग कहाँ आ पाते हैं,
कंचन काया तो आ जाती है, पर देह की कोमलता कहाँ आ पाती है।
सच कहें, तो आपकी पान खाई जीभ की तरह तो लाल उसके तलवे हैं.
बादशाह को सौंदर्य की प्रशंसा ने जितना मोहित किया,
अंतिम में दी गई उपमा ने उतना ही क्षुब्ध कर दिया.
उन्होंने क्रुद्ध होकर कहा-
बदतमीज फकीरों,
बादशाह की जुबान को किसी के तलवों से मिलाते हो.
चलो फिर जुबान के लिए सच में कुछ दिनों तक पैरों तले रह कर देखो.
अकबर ने फकीरों को कैद करने का हुक्म दे दिया.
पर मन में मोहना रानी की मोहिनी मूरत बस गई.
अकबर ने बीरबल से चर्चा कर राज्य में यह घोषणा कर दी कि
जो भी मोहना रानी की सूरत-मूरत ले आएगा,
उसे वह आधा राजपाट दे देंगे।
सूरत-मूरत का तात्पर्य ऐसा चित्र था,
जो निर्वस्त्र हो.
मुनादी करने वाले नगाड़ा लेकर नगर-नगर, गाँव-गाँव घूम रहे थे,
किसी ने हिम्मत न दिखाई.
वहीं किसी गाँव में कोई छैल बटाऊ नामक युवक रहता था।
लोकभाषा में पूरा विवरण था- राड़ी माई बटाऊ टुरा.
इसका अर्थ हुआ कि बटाऊ किसी विधवा माँ का इकलौता पुत्र था.
माँ बहुत गरीब थी,
दूसरों के यहाँ चुकिया-पिसिया अर्थात् अनाज बीनने-पीसने का काम कर गुजारा करती थी।
एक छोटी सी झोपड़ी भर थी.
छैल बटाऊ भी राजघराने के पालतू पशु चराता था.
लोग उसे छैल बटोही कुँवर भी कहते थे.
वह सचमुच सदा यायावर और बटोही बना रहता,
अपनी ही धुन में मस्त,
नगर-नगर, गाँव-गाँव घूमता रहने वाला.
पान खाने का शौकीन था.
गाँव की लड़कियाँ व स्त्रियाँ गोबर से उपले व कंडे बनाती थीं,
वे अक्सर उसके पशुओं के गोबर लेने के लिए पान खिलाया करती थीं.
छैल बटाऊ ने जब नगाड़े वालों को पान का बीड़ा लिए घूमते देखा,
तो उसने उत्सुकतावश पान उठा कर खा लिया,
यह सोच कर कि शायद यह राजा के द्वारा किसी उछा मंगल अर्थात् पर्व पर वितरण किया जा रहा है
और यही आखिरी बचा है।
बाद में जब पता चला कि
पान खाने वाले को अवधे नगर की रानी मोहना की सूरत मूरत लानी है,
तो उसने बेहिचक चुनौती स्वीकार कर ली.
राजा के सैनिक उसे लेकर दरबार में आये,
तो राजा बोला-
ये गाँव का गँवार और अनपढ़ लड़का भला अवधे नगर पहुँचेगा
और पहुँच भी जाए, तो भला क्या वह रानी तक पहुँच पाएगा,
रानी तक पहुँच भी जाए, तो भला क्या वह रानी की सूरत-मूरत बनवाने की इजाजत पाएगा.
संदेह स्वाभाविक था,
पर छैल अपने निश्चय पर दृढ़ रहा.
उसके दृढ़ निश्चय को देख कर राजा ने उसे कुछ समय तक शिक्षण प्रशिक्षण के लिए राजमहल में ही रोक लिया.
अलग-अलग तरह की विद्याओं के लिए योग्य गुरु लगा दिये गये,
विभिन्न कौशलों के सामान्य प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षक लगा दिए गए,
कई कलाओं के लिए प्रतिष्ठित कलाकार नियुक्त कर दिये गये.
कुछ ही दिनों में वह अच्छा घुड़सवार और तीरंदाज बन गया.
गणित में इतना कुशल हो गया कि
मुट्ठी में रखी रेत के कण गिन कर बता दे.
जब प्रशिक्षण का कार्य पूर्ण हुआ,
तो बादशाह ने उसके शृंगार के लिए सुनार बुलवाए.
सुनार ने तमाम आभूषण बनाए,
छैल को पहना कर बादशाह को दिखाने ले गया.
बादशाह ने पूछा,
क्या इतने गहनों में छैल मोहना के बराबर लगेगा?
सुनार बोला,
नहीं जहाँपनाह, अभी तो चौदह और बीस का फासला है।
बादशाह बोला-
नहीं, तो फासला मिटा कर ले आओ.
सुनार और खूबसूरत गहनों में जुट गया.
छैल का दुबारा शृंगार कर ले आया,
बादशाह ने पूछा,
क्या अब इतने गहनों में छैल मोहना के बराबर लगेगा?
सुनार बोला,
नहीं जहाँपनाह, अब भी उन्नीस और बीस का फासला है।
बादशाह बोला-
तब ठीक है, आदमी और औरत में इतना तो फासला रहेगा ही.
अब छैल अवधे नगर जाने को तैयार था.
जाते समय बादशाह ने उसे कई चीजें दीं,
मंदराज नामक काबुली घोड़ा,
चन्द्रभान खांडा नामक तलवार
और सोने की मुहरों की थैली व थोकड़ा.
छैल शहसवार बना घर पहुँचा.
माँ पहचान ही न पाई.
जब छैल घोड़ा लिए द्वार से आँगन तक पहुंच गया,
तो वह बोली कि
काश कि आज मेरा बेटा मेरे पास होता,
तो यूँ कोई शहसवार बिना पूछे घर में दाखिल न हो जाता.
तब छैल ने बताया कि वह उसका बेटा ही है.
फिर उसने पीछे की सारी कहानी कह सुनाई।
माँ घबराई, पर उसे खुशी से विदा करने आई.
चलते समय उसके साथ एक पोटली में गुड़-चिउड़ा रख दिया,
ताकि बेटे को राह में भोजन की कुछ जरूरत पूरी हो सके.
छैल ने भी माँ के हाथों में सोने की मुहरों की एक पोटली रख दी,
ताकि उसके वक्त जरूरत काम आ सके.
छैल मंदराज घोड़े पर शहसवार बना,
चन्द्रभान तलवार लिए राजसी वेश में चलता गया.
अवधे नगर के पहले उसे सरलंका और परलंका देशों को पार करना पड़ा,
अंततः चुनौतियों व बाधाओं को पार करते हुए वह अवधे नगर पहुँचा.
वहाँ नगर के बाहर शराब बनाने वाले कलालों की बस्ती थी.
उनमें वह एक संपन्न कलाल के घर जा पहुँचा,
जिसका नाम सोड़ी कलाल था.
उस समय आदमी घर पर नहीं था,
दीपावली आने को थी,
नगर में जुए का माहौल था,
वह नगर जा चुका था।
सोड़ी की पत्नी सोड़ियानी ने छैल को राजा समझ कर उसका स्वागत किया.
छैल बटाऊ ने उससे सबसे पुरानी और तेज महुए की शराब माँगी.
सोड़ियानी ने उसे पंझारी नामक तेज शराब दे दी.
फिर बातों में पता चला कि
सोड़ी और सोड़ियानी बारह साल से विवाहित हैं,
उनकी कोई संतान नहीं है।
दोनों में कुछ ही समय में घनिष्ठता हो गई.
सोड़ियानी ने छैल बटाऊ से उसके आने का उद्देश्य पूछा,
तो उसने सब सच-सच बता दिया.
अंत में जब छैल बटाऊ ने सोड़ियानी से मोहना रानी से मिलने का रास्ता पूछा,
तो उसने उसे सहयोग का वचन दिया.
सोड़ियानी राजमहल में मदिरा लेकर जाती थी।
उसके साथ छैल भी वेश बदल कर जा पहुँचा.
वहाँ उसने झरोखे से मोहना रानी को देखा,
तो मंत्रमुग्ध हो गया.
बाद में पता चला कि
मोहना रानी बाग में कंकन कुइयाँ पर प्रात: स्नान करने आती हैं।
छैल बटाऊ ने राजमहल के उद्यान के सेवकों व सैनिकों को शराब पिला कर बेहोश कर दिया.
फिर वह कंकन कुइयाँ पर जा पहुँचा.
वहाँ उसने जब छिपकर मोहना रानी को स्नान करते देखा,
तो चुपचाप उनकी तस्वीर बना ली.
दीपावली के समय जब सब राजमहल को सजा रहे थे,
तब वह छल या कौशल से रनिवास जा पहुँंचा.
वहाँ जब दीप के प्रकाश में उसने मोहना की मोहिनी मूरत देखी,
तो उससे रहा नहीं गया.
उसने मधुर गीत गाकर मोहना के रूप और अपने प्रेम का वर्णन किया,
साथ ही उसमें अपना परिचय भी दिया.
मोहना ने पहले तो उस परदेशी अजनबी को देख भय व रोष प्रकट किया,
फिर जब उसने फकीरों के साथ बादशाह के पास उसकी मूरत जाने और उसे सब सच-सच बोलते पाया,
तो वह भी मोहित हो गई.
छैल बटाऊ और मोहना रानी मन ही मन एक दूसरे को प्रेम करने लगे.
परंतु इस बीच राजा को पता चल गया.
उन्होंने छैल बटाऊ की हत्या कर दी
छैल के वियोग में मोहना सती होने जा रही थी,
इसी बीच वहाँ से गुजर रहे शिव-पार्वती ने द्रवित होकर उसे जीवित कर दिया.
छैल बटाऊ व मोहना रानी दोनों सरलंका, परलंका होते हुए दिल्ली पहुँचे.
बादशाह अकबर ने दोनों का प्रेम देख कर विवाह करा दिया
और पाँचों फकीरों को भी कैद से आजाद कर दिया.
अंत में छैल बटाऊ-मोहना रानी आधा राज्य पाकर सुखपूर्वक रहने लगे.
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छैल बटाऊ-मोहना रानी की कथा संभवतः महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व बिहार …
छैल मंदराज घोड़े पर शहसवार बना,
चन्द्रभान तलवार लिए राजसी वेश में चलता गया.
अवधे नगर के पहले उसे सरलंका और परलंका देशों को पार करना पड़ा,
अंततः चुनौतियों व बाधाओं को पार करते हुए वह अवधे नगर पहुँचा.
वहाँ नगर के बाहर शराब बनाने वाले कलालों की बस्ती थी.
उनमें वह एक संपन्न कलाल के घर जा पहुँचा,
जिसका नाम सोड़ी कलाल था.
उस समय आदमी घर पर नहीं था,
दीपावली आने को थी,
नगर में जुए का माहौल था,
वह नगर जा चुका था।
सोड़ी की पत्नी सोड़ियानी ने छैल को राजा समझ कर उसका स्वागत किया.
छैल बटाऊ ने उससे सबसे पुरानी और तेज महुए की शराब माँगी.
सोड़ियानी ने उसे पंझारी नामक तेज शराब दे दी.
फिर बातों में पता चला कि
सोड़ी और सोड़ियानी बारह साल से विवाहित हैं,
उनकी कोई संतान नहीं है।
दोनों में कुछ ही समय में घनिष्ठता हो गई.
सोड़ियानी ने छैल बटाऊ से उसके आने का उद्देश्य पूछा,
तो उसने सब सच-सच बता दिया.
अंत में जब छैल बटाऊ ने सोड़ियानी से मोहना रानी से मिलने का रास्ता पूछा,
तो उसने उसे सहयोग का वचन दिया.
सोड़ियानी राजमहल में मदिरा लेकर जाती थी।
उसके साथ छैल भी वेश बदल कर जा पहुँचा.
वहाँ उसने झरोखे से मोहना रानी को देखा,
तो मंत्रमुग्ध हो गया.
बाद में पता चला कि
मोहना रानी बाग में कंकन कुइयाँ पर प्रात: स्नान करने आती हैं।
छैल बटाऊ ने राजमहल के उद्यान के सेवकों व सैनिकों को शराब पिला कर बेहोश कर दिया.
फिर वह कंकन कुइयाँ पर जा पहुँचा.
वहाँ उसने जब छिपकर मोहना रानी को स्नान करते देखा,
तो चुपचाप उनकी तस्वीर बना ली.
दीपावली के समय जब सब राजमहल को सजा रहे थे,
तब वह छल या कौशल से रनिवास जा पहुँंचा.
वहाँ जब दीप के प्रकाश में उसने मोहना की मोहिनी मूरत देखी,
तो उससे रहा नहीं गया.
उसने मधुर गीत गाकर मोहना के रूप और अपने प्रेम का वर्णन किया,
साथ ही उसमें अपना परिचय भी दिया.
मोहना ने पहले तो उस परदेशी अजनबी को देख भय व रोष प्रकट किया,
फिर जब उसने फकीरों के साथ बादशाह के पास उसकी मूरत जाने और उसे सब सच-सच बोलते पाया,
तो वह भी मोहित हो गई.
छैल बटाऊ और मोहना रानी मन ही मन एक दूसरे को प्रेम करने लगे.
परंतु इस बीच राजा को पता चल गया.
उन्होंने छैल बटाऊ की हत्या कर दी
छैल के वियोग में मोहना सती होने जा रही थी,
इसी बीच वहाँ से गुजर रहे शिव-पार्वती ने द्रवित होकर उसे जीवित कर दिया.
छैल बटाऊ व मोहना रानी दोनों सरलंका, परलंका होते हुए दिल्ली पहुँचे.
बादशाह अकबर ने दोनों का प्रेम देख कर विवाह करा दिया
और पाँचों फकीरों को भी कैद से आजाद कर दिया.
अंत में छैल बटाऊ-मोहना रानी आधा राज्य पाकर सुखपूर्वक रहने लगे.